भारत ने बनाया अपना विमानवाहक पोत, क्या Indonesia भी कर सकता है?



भारत ने घरेलू रूप से निर्मित पहला विमानवाहक पोत INS विक्रांत लॉन्च कर दुनिया की शीर्ष समुद्री शक्तियों में अपना नाम दर्ज करा लिया है। यह 37,500 टन वजनी पोत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2 सितंबर को केरल के कोचीन शिपयार्ड में राष्ट्र को समर्पित किया गया। यह क्षण न केवल एक तकनीकी उपलब्धि था, बल्कि भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मजबूत कदम भी साबित हुआ।

INS विक्रांत भारत की इंजीनियरिंग और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा कि भारत जब ठान लेता है, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। यह पोत देश को नई आत्मविश्वास और सामरिक शक्ति प्रदान करता है।

इस परियोजना के साथ भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है जो अपने दम पर विमानवाहक पोत डिजाइन और निर्माण करने में सक्षम हैं। इससे पहले अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन जैसे देश इस सूची में शामिल थे। अब भारत भी इस विशिष्ट क्लब का हिस्सा बन गया है।

इस सफलता के पीछे एक दशक से भी अधिक समय की मेहनत, अनुसंधान और विशाल निवेश है। INS विक्रांत का निर्माण पूरी तरह से भारत में हुआ और इसमें सैकड़ों स्थानीय कंपनियों और हजारों भारतीय कामगारों ने योगदान दिया। 'मेक इन इंडिया' नीति ने इस दिशा में अहम भूमिका निभाई है।

भारत की यह उपलब्धि इंडोनेशिया के लिए प्रेरणा बन सकती है। दुनिया का सबसे बड़ा द्वीपीय देश होने के नाते इंडोनेशिया के लिए एक मजबूत नौसेना बहुत जरूरी है। हालांकि, इंडोनेशिया अभी तक अपना खुद का विमानवाहक पोत नहीं बना पाया है।

इंडोनेशिया में क्षमता की कोई कमी नहीं है। सुराबाया स्थित PT PAL जैसे शिपयार्ड पहले से ही युद्धपोत, पनडुब्बी और अस्पताल पोत बना रहे हैं। यदि सरकार दीर्घकालिक योजना और सही निवेश करे, तो आने वाले दशकों में इंडोनेशिया भी अपने विमानवाहक पोत का निर्माण कर सकता है।

इसके लिए जरूरी है कि सरकार अनुसंधान, तकनीक, मानव संसाधन और रक्षा उद्योग में निवेश बढ़ाए। भारत ने यह साबित कर दिया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और रणनीतिक योजना से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

भारत की तरह इंडोनेशिया को भी एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करना होगा। INS विक्रांत की सफलता कई सरकारों की निरंतर नीति, सेना और उद्योग के बीच तालमेल और नागरिक-सेना सहयोग का परिणाम है।

इंडोनेशिया को शुरुआत में हल्के विमानवाहक पोत की योजना बनानी चाहिए और तकनीकी सहयोग के जरिए धीरे-धीरे अपनी क्षमताएं बढ़ानी चाहिए। भारत जैसे देशों से तकनीक और अनुभव साझा करना इस प्रक्रिया को तेज कर सकता है।

भारत का उदाहरण बताता है कि समुद्री प्रभुत्व केवल सैन्य शक्ति नहीं, बल्कि औद्योगिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है। इंडोनेशिया के पास प्राकृतिक संसाधन हैं, लेकिन उन्हें सुरक्षित रखने के लिए सशक्त नौसेना की जरूरत है।

विमानवाहक पोत एक रणनीतिक संपत्ति है। यह केवल युद्ध का हथियार नहीं, बल्कि कूटनीतिक प्रभाव और समुद्री हितों की रक्षा का माध्यम भी है। इंडोनेशिया के लिए यह आर्थिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

विमानवाहक पोत परियोजना से हजारों नौकरियाँ पैदा होंगी और अनेक उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। यह देश की औद्योगिक बुनियाद को मजबूत करेगा और तकनीकी क्षमताओं को नई ऊंचाई देगा।

अब समय आ गया है कि इंडोनेशिया इस दिशा में ठोस कदम उठाए। अगर आज से योजना बनाई जाए, तो 2045—जब देश अपनी स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ मनाएगा—तब तक एक स्वदेशी विमानवाहक पोत संभव हो सकता है।

भारत ने दिखा दिया है कि आत्मनिर्भरता सिर्फ सपना नहीं, एक सच्चाई हो सकती है। अब बारी इंडोनेशिया की है कि वह इस प्रेरणा को एक ठोस योजना में बदले और समुद्री शक्ति के क्षेत्र में अपने को स्थापित करे।

एक महान राष्ट्र बनने के लिए महान सपने देखने होते हैं। भारत अगर अपने दम पर विमानवाहक पोत बना सकता है, तो इंडोनेशिया क्यों नहीं? फैसला आज लिया जाना चाहिए, ताकि कल का भविष्य आत्मनिर्भर और सशक्त हो सके।

Posting Komentar

Lebih baru Lebih lama